Saryuparin Brahmin Samaj in Hindi: सरयूपारी ब्राह्मण एक हिंदू ब्राह्मण समुदाय है जो मुख्य रूप से भारत के उत्तरी भाग में रहते हैं, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश राज्यों में। “सरयूपारी” शब्द संस्कृत शब्द “सरयू” से लिया गया है, जो उस नदी को संदर्भित करता है जिसके तट पर ब्राह्मण बसे हुए थे। सरयूपारी ब्राह्मण कई उप-जातियों में विभाजित हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी परंपराएं और रीति-रिवाज हैं। कुछ प्रमुख उप-जातियों में कान्यकुब्ज ब्राह्मण, सनाढ्य ब्राह्मण और गौड़ ब्राह्मण शामिल हैं।
ब्राह्मणोंत्पत्ति मार्तण्ड, ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण, ब्राह्मण गोत्रावली, आदि ग्रन्थों के अनुसार त्रेतायुग में जब श्रीराम जी रावण-वध कर, लंका विजय करके अयोध्या लौटे तो उन्हें खुशी और गम दोनों एक साथ हुए। खुशी इस बात की वे विजेता बन कर लौटे हैं और दुःख इस बात का था कि मेरे द्वारा एक प्रकाण्ड पंडित, तपस्वी और कुलीन ब्राह्मण की हत्या हुई है । इसलिए ब्रह्महत्या के दोष से दुःखी थे । एतदर्थ उन्होंने ऋषि-मुनियों से ब्रह्महत्या के दोष के निवारण का उपाय पूछा । ऋषियों ने उन्हें अश्वमेध यज्ञ करने की सलाह दी। राम ने यज्ञ करने का निश्चय किया । उस यज्ञ में गौड़ ब्राह्मण प्रधान होते थे, किन्तु देश के अन्य भागों से उद्भट विद्वान् एवं तपस्वी भी पधारे थे । वहाँ कन्नौज के दो विद्वान् एवं तपस्वी ऋषि कान्य एवं ऋषि कुब्ज भी पधारे थे। ये दोनों भाई थे | यज्ञ में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी । जब यज्ञ समाप्त हुआ, तब कुब्ज ने सोचा कि अब राम ब्राह्मणों को दक्षिणा बाँटेंगे । राम एक राजा है, जिनके पास अपने पसीने की कमाई हुई सम्पत्ति नहीं है। वह जनता से वैधअवैध तरीके से वसूल की हुई सम्पत्ति का मालिक है। ऐसे राजा से प्राप्त किये दान से हमें भी पाप लगेगा । इसलिए ऐसे राजा का दान नहीं लेना चाहिए। साथ ही यदि ब्रह्महत्या जैसे पाप के प्रायश्चित स्वरुप वह दान दिया जा रहा है तो वह और भी दूषित है। राम ने रावण जैसे महा तपस्वी एवं विद्वान् ब्राह्मण की हत्या की थी। इसलिए यह दान नहीं लेना चाहिए । यह सोच कर कुब्ज ऋषि दान दक्षिणा लेने के भय से चुपचाप अयोध्या से सरयू नदी पारकर सरयू से उत्तर की दिशा में चले गये। उनके साथ बहुत से अन्य ब्राह्मण भी चले गये । ये ब्राह्मण सरयू नदी पार कर के दक्षिणा लेने के डर से चले गये थे, इसलिए इनको सरयूपारीण, सरयू-पारी या सरवरिया ब्राह्मण कहते हैं।
सरव्याश्चोत्तरे देशे ये गताश्च द्विजोत्तमाः।
सरयू ब्राह्मणास्ते वै संजाता नामभिः किल ।।
अर्थात् सरयूनदी के उत्तर देश में जो ब्राह्मण गये उनको सरवरिये ब्राह्मण कहते हैं। ये सरयूपारी या सरवरिये ब्राह्मण जिस गाँव में अपनी बेटी का विवाह करेंगे उस गाँव की बेटी लेते नहीं । यहाँ तक लड़की की ससुराल के गाँव का पानी तक नहीं पीते। आजकल गोरखपुर, जौनपुर, गाजीपुर, मिरजापुर, काशी, प्रयाग, अयोध्या, बस्ती, आजमगढ़, गोण्डा आदि स्थानों पर सरयूपारी ब्राह्मण बहुतायत से रहते हैं। छिट-पुट में अन्यत्र भी देखे जा सकते हैं। लोकव्यवहार में सरयूनदी के उत्तर दिशा वाले किनारे को सारब कहते हैं। इसलिए वहाँ उत्पन्न हुए ब्राह्मणों को सारब या सरयूपारी कहा जाता है। मत्स्य पुराण के अनुसार-
अयोध्या दक्षिणे यस्याः सरयूतटगः पुनः ।
सारवीवार देशोंऽयं गौडास्तदनुकीर्तिताः ॥
सरयूपारी ब्राह्मणों के गोत्र निम्न प्रकार से हैं-
(1) गर्ग, (2) गौतम, (3) शण्डिल्य, (4) पराशर, (5) सावर्णि, (6) काश्यप, (7) वत्स, (8) भारद्वाज, (9) कौशिक, (10) उपमन्यु, (11) वशिष्ठ, ( 12 ) गार्ग्य, ( 13 ) कात्यायन, (14) घृत कौशिक, ( 15 ) गर्दभीमुख, (16) भृगु, ( 17 ) भार्गव, (18) अगस्त्य, (19) कौण्डिन्य आदि ।
किन्तु प्रधान रूप से 16 गोत्रों की चर्चा होती है। परम्परावश तीन-तेरह का भेद चला आ रहा है।
सरयूपारी ब्राह्मणों में तीन श्रेणियां मिलती हैं
1. त्रिकुल ( प्रथम श्रेणी) 2. त्रयोदश कुल (द्वितीय श्रेणी) 3. तीसरी श्रेणी
त्रिकुल को तीन और त्रयोदश कुल को तेरह कहते हैं। त्रिकुल, त्रयोदश कुल और तृतीय श्रेणी मात्र सम्बोधन के लिए है। 11 गोत्रों से तीन और तेरह, अर्थात् सोलह घर इन ब्राह्मणों के भेद कहे गये हैं। ये 11 गोत्र हैं –
1. गर्ग, 2. गौतम, 3. शाण्डिल्य, 4. भारद्वाज, 5. वत्स, 6. घृत कौशिक, 7. गार्ग्य, 8. सावर्ण्य, 9. गर्दभीमुख, 10. सांकृत, 11. कश्यप ।
वयसी, मधुवनी, मार्जनी, धरमा, भरसी, पयासी, ग्रामों के ब्राह्मण मिश्र कहे जाते हैं ।
सरया, सोहगौरा, धतुरा, गुरौली, पाला, टाडा, पिण्डी, नदौली, पोहिल, खैरा, सिघनजोड़ी ग्रामों के ब्राह्मण द्विवेदी और त्रिवेदी कहे जाते हैं।
इटिया, माला, नागचौरी, हस्तग्राम, धमौली, चारपानी, त्रिफला, इटार और अगस्तपार ग्रामों के ब्राह्मण पाण्डेय कहलाते हैं ।
काचंनी, अर्थात्, गुर्दवान्, बृहदग्राम, अर्थात् बड़गो, मीठावेल, कोढारी, समुदार और सरार ग्रामों के ब्राह्मण द्विवेदी कहलाते हैं।
नेपुरा और पिपरासी गांव के ब्राह्मण चौबे कहलाते हैं।
सोनार गांव के ब्राह्मण पाठक हैं।
खोदिया और लखिमा गांव के ब्राह्मण उपाध्याय हैं।
करेली गांव के ब्राह्मण ओझा हैं ।
ध्यान दें – कौडिन्य गोत्र के ब्राह्मण शुक्ल, मिश्र और त्रिवेदी उपाधियों से सम्बोधित होते हैं ।
प्रथम श्रेणी के ब्राह्मण- प्रथम श्रेणी के ब्राह्मण वे हैं, जिनका मूल गोत्र एक ही ऋषि का चला आ रहा है।
द्वितीय श्रेणी के ब्राह्मण- द्वितीय श्रेणी के ब्राह्मण वे हैं, जिनमें द्वामुष्यायण मिल गये हों, जैसे किसी की सन्तान नहीं है, उसने दूसरे गोत्र वाले किसी रिश्तेदार के बालक कोया किसी अन्य गोत्रीय ब्राह्मण बालक को गोद लेकर या किसी अन्य ऋषि गोत्रीय बच्चे का क्रय करके अपना पुत्र बना लिया हो, उसे द्वामुष्यायण कहते हैं। उसके सम्मिश्र कुल हो जाने से द्वितीय श्रेणी के कहे जाते हैं।
पंक्ति पावन- एक तीसरी श्रेणी है-पंक्ति पावन ब्राह्मणों की । जिनकी उपस्थिति से दूषित ब्राह्मणों की पंक्ति भी पवित्र हो जाती है। ये पंक्ति पावन ब्राह्मण वेद वेदान्त के पारगामी और सदाचारनिष्ठ होते हैं। सरयूपारीय ब्राह्मण कुल में ही पंक्ति पावन मिलते हैं। ये वेद के छहों अंगों के ज्ञाता, विनयी, योगी और ययावर, यानि एक रात्रि से अधिक एक स्थान में न रहने वाले होते हैं। इनको पंक्ति पावन कहते हैं। ‘मनुस्मृति’ के तृतीय अध्याय में कहा है –
अपाङ्कत्योपहता पंक्ति: पाल्यते यैर्द्विजोत्तमैः ।
तान्निबोधयत कार्येन द्विजाग्रान् पंक्तिपावनान् ॥
1. शाण्डिल्य गोत्री कुछ त्रिपाठी लोगों में पंक्तियां है । इनके पीछे एक इतिहास है। सरार गांव ताप्ती नदी के किनारे है। एक बार एक कुटुम्ब में राजयक्ष्मा प्रविष्ट हो गया । यह संक्रामक रोग है। धीरे-धीरे पूरा परिवार इससे ग्रसित हो गया और सभी कालकवलित हो गये। सौभाग्य से एक स्त्री मायके गयी हुई थी। उसके पेट में बच्चा था। उसका प्रसव नाना के घर में हुआ और वहीं उसका पालन-पोषण भी होने लगा। जब बच्चा कुछ बड़ा हो गया, तो उसने माताजी से अपने पिता के विषय में पूछा। मां ने रो-रोकर कुल के सत्यानाश की पूरी कहानी सुना दी। बालक अपनी पितृभूमि देखने के लिए व्याकुल हो गया और अपने एक ग्वाले मित्रके साथ सरार गांव को चल दिया।
ताप्ती के तट पर बसी अपनी पितृभूमि को देखकर रो पड़ा और अपने मित्र ग्वाले से कहा, “इस भूमि पर हमारे पूर्वजों ने जान दी है। हम भी यहीं प्राण त्यागेंगे।” ग्वाले ने उसे बहुत समझाया, किन्तु वह नहीं माना। अन्त में ग्वाले ने कहा, “जाओ, पहले स्नान करके तो आओ । उसके बाद जो चाहो करना ।” वह लड़का ताप्ती नदी में स्नान करने के लिए उतरा। ग्वाले को लगा वह तो डूब गया। अब पीड़ित ग्वाले ने आत्महत्या कर ली। जब ब्राह्मण बालक नहाकर आया, तो उसने वाले के शव को देखा। बड़ा दुःखी हुआ । उसके बाद वह सरार गांव में गया। गांव के लोगों ने उसके पूर्वजों की जमीन उसे दे दी और उसका नाम उस दिन से धरणीधर हो गया। उस बालक के कुल के लोग अपने नाम के साथ धर लगाते हैं, इनके कुल में साधु नामक ग्वाले की पूजा होती है।
2. गौरक्षा नाम के एक ब्राह्मण थे। उनके चार लड़के थे, उनके नाम राम, कृष्ण, नाथ और मणि थे। ये विभिन्न गांवों में जाकर बस गये। जो जहाँ बसा, वह अपने नाम के साथ अपने पितरों का नाम लगाने लगा। जैसे सरार गांव के वंशज अपने नाम के साथ राम लगाते हैं। सोहगौरा के वंशज अपने नाम के साथ कृष्ण लगाते हैं। धतुरा के ब्राह्मण अपने नाम के अन्त में मणि लगाते हैं। इसी प्रकार चेतिया ग्राम के वंशज अपने नाम के अन्त में नाथ शब्द लगाते हैं। उपरोक्त चारों गांवों के ब्राह्मण अपने को श्रीमुख शाण्डिल्य बतलाते हैं। इसी प्रकार नदौली ग्राम में एक नन्ददत्त नामक ब्राह्मण रहते थे। उनके मेरु, फेरु और सुखपति तीन पुत्र हुए। मेरु और फेरु के वंशज अपने नाम के साथ नाथ लगाते हैं, किन्तु सुखपति और सभापति के वंशज पिण्डी ग्राम वासी अपने नाम के साथ पति शब्द का प्रयोग करते हैं। जबकि प्रामाणिक शास्त्रीय ग्रन्थों में न तो कहीं श्रीमुख की चर्चा है और न गर्दमुख की । राम, कृष्ण, नाथ, पति तो बहुत दूर की बात है।
3. पिण्डी गांव-एक दिन गौतम गोत्र के एक पंक्ति पावन ब्राह्मण ने सभापति के हाथ की पानी में सानी हुई सत्तू की पिण्डी खा लिया, तब से सभापति पंक्ति मे मिला लिये गये और उस गांव का नाम पिण्डी हो गया । नदौली वासी ब्राह्मणों का गोत्र गर्दभी मुख है।
4. गर्दभी मुख नाम के पांच गोत्रकार ऋषि विभिन्न समयों में उत्पन्न हुए हैं। जैसे- भृगुवंश में गर्दभी मुख, वशिष्ठ वंश में गर्दभीमुख, विश्वामित्र वंश में गर्दभीमुख, 200? सरयूपारी ब्राह्मणोत्पत्ति वर्णन अंगिरस वंश में गर्दभीमुख और कश्यप वंश में गर्दभीमुख ।
1. ये जिस गांव में अपनी बेटी की शादी करते हैं, उस गांव में बेटे की शादी नहीं करते ।
2. विवाह सम्बन्ध में येगोत्र निर्णय में बहुत सावधान रहते हैं।
3. गोत्र भिन्न होने पर भी यदि समान हो, तो विवाह वर्जित माना जाता है। जैसे-शाण्डिल्य, कश्यप और गर्दभीमुख के गोत्र भिन्न-भिन्न हैं, किन्तु प्रवर समान होने से विवाह सम्बन्ध वर्जित है।
4. अंगिरस और भृगु के सिवा अगर एक भी प्रवरर्षि समान दिख पड़े, तो उसे सगोत्र कहते हैं ।
5. भरद्वाज, गर्ग, रौक्षायण और और्व-ये चारों भारद्वाज कहे जाते हैं। इनका परस्पर विवाह सम्बन्ध नहीं होता है ।
6. हारित, संकृति, कण्व, रथीतर, मुद्गल, विष्णु, वृद्ध-ये छह ऋषि अंगिरस पक्ष के हैं। इसलिए इनमें विवाह सम्बन्ध वर्जित है।
7. वितहव्य, मिश्रयु, शुनक तथा वेणु-ये चार ऋषि भृगु पक्ष के होने से भार्गव कहलाते हैं। इनका भी परस्पर विवाह वर्जित है।
8. भृगु, सावर्णि और वत्स गोत्रों के पंच प्रवर भार्गव, च्यवन, आप्लवान, और्व और जामदग्न्य हैं। इसलिए इनका भी परस्पर विवाह सम्बन्ध वर्जित है।
9. माण्डव्य, दर्भ, रैवत के साथ भृगु और जमदग्नादि का विवाह सम्बन्ध नहीं होता है ।
गार्ग्य और गार्गेय भी इसी के अंतर्गत हैं। इन गांवों के भी कई भेद हो गये हैं। जैसे –
द्विवेदी लोगों का मूल गांव बरपार, सहुवा, बडयापार, गोपालपुर, गड़री, रजहटा, कांचनी, गुर्दवान, धनौली, मझौरा तथा पटियारी ।
इनके दो भेद 1. श्री मुख, 2. गर्धमुख
गोरखपुर में सरयां, सौहगौरा, झुड़िया, देउरवा, मलुवा, सिरजम, धानी, सोपरी, चेतिया और परतावल।इन गांवों के तिवारी परिवार में पंक्ति भेद है। इनके नाम के साथ राम, कृष्ण, नाथ तथा मणि शब्द लगाते हैं।
सरसा, सोहगौरा, उनवलिया, अतरौली, रुद्रपुर, झड़िया, बहुवारी आदि के निवासी अपने नाम के साथ मणि शब्द लगाते हैं।
निम्नलिखित गांवों में भी शाण्डिल्य गोत्री तिवारी मिलते हैं, किन्तु इनका प्रवर भिन्न है।
कदहा, गोपीकान्ध, यंगेरा और घोड़नर के तिवारी लोगों का गोत्र तो शाण्डिल्य है, किन्तु प्रवर शाण्डिल्य, कौलव तथा बाल्मीक है।
देउरिया, खोरभा, गानौरा, नेवास, नकौझा, बुढ़ियावारी, धतुरा, पाला, सेमरी, चौरा, गुरौली, हथियामरास के तिवारी लोगों का प्रवर शाण्डिल्य, असित एवं कश्यप है।
इनका आदि स्थान नदौली कहा जाता है। यहीं से पिण्डी स्थान भी सम्बन्ध है । अन्तर केवल इतना है कि नदौली के लोग ‘नाथ’ शब्दान्त तथा पिण्डी के ‘पति’ शब्दान्त नामों से कहे जाते हैं। इसी गोत्र में कीलपुर के दीक्षित लोग भी हैं, किन्तु उनमें पंक्ति नहीं है।
सरयू पारीण ब्राह्मणों में उपरोक्त गोत्रों के अतिरिक्त भी गोत्र मिलते हैं।
नाम गोत्र उत्तर भारतीय ब्राह्मण गोत्र शासनावली 183 चन्द्रायण आस्पद ग्राम वरतन्तु कश्यप पाण्डेय 1. 2. 3. त्रिपाठी वेलौंजा 4. धर्महरि दुबे सिंगेला कण्व निरौली दुबे सरयू पारीण ब्राह्मणों के गोत्र का और भी विस्तार है।
अभी तक सरयूपारी ब्राह्मण समाज की गोत्रानुसार कुलदेवियों का विवरण नहीं मिल पाया है। यदि आप इसी समाज से हैं और अपनी कुलदेवी के बारे में जानते हैं तो कृपया Comment Box में अपना गोत्र, स्थान व कुलदेवी की जानकारी अवश्य लिखें।
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